भूमि पट्टा अधिकारों के हस्तांतरण पर जीएसटी लगाने का मुद्दा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष।एमआईडीसी एवं अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में भूखण्ड धारकों का निर्णय पर ध्यान।

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माननीय सर्वोच्च न्यायालय रियल एस्टेट क्षेत्र पर जीएसटी लगाने के व्यापक प्रभावों वाले एक महत्वपूर्ण मुद्दे की सुनवाई कर रहा है। भूमि में पट्टे के अधिकारों के आवंटन को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से छूट के लिए पात्र "भूमि हस्तांतरण" माना जाए या जीएसटी के अधीन "सेवाओं की आपूर्ति" माना जाए, यह मुद्दा मा.न्यायालय के समक्ष है।
      मा.सर्वोच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ सरकार द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें मा. गुजरात उच्च न्यायालय के 2023 के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया था कि भूमि पट्टे के अधिकारों के हस्तांतरण पर जीएसटी लागू नहीं होता है। मा. सर्वोच्च न्यायालय के प्रस्तावित फैसले से दीर्घकालिक पट्टों और अचल संपत्ति के समनुदेशन पर कराधान व्यवस्था पर बहुप्रतीक्षित स्पष्टता मिलने की उम्मीद है। यह विवाद उन लेन-देन से उत्पन्न हुआ जहाँ औद्योगिक प्रतिष्ठानों और डेवलपर्स ने व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए सरकारी भूमि पर पट्टे के अधिकार प्राप्त किए और बाद में उन्हें हस्तांतरित कर दिया।
       जीएसटी विभाग ने तर्क दिया कि पट्टे के अधिकारों का आवंटन या हस्तांतरण केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 7(1)(ए) के तहत सेवा की आपूर्ति है, जिससे यह जीएसटी के लिए उत्तरदायी है।
       हालाँकि, मा. गुजरात उच्च न्यायालय ने श्री दीपेश अनिल कुमार नाइक बनाम भारत सरकार के मामले में यह माना कि ऐसा लेन-देन भूमि में हिस्सेदारी का हस्तांतरण है, जो जीएसटी के दायरे से बाहर है। माननीय उच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भूमि अधिकारों का पट्टा या हस्तांतरण अचल संपत्ति का एक लेन-देन है, जो परंपरागत रूप से अप्रत्यक्ष कराधान के बजाय स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण अधिनियमों द्वारा शासित होता है। इसलिए यह जीएसटी के दायरे से बाहर है। 
      इस निर्णय से राज्य में कई औद्योगिक भूमियों, विशेष रूप से महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम द्वारा दी गई और बाद में हस्तांतरित की गई भूमियों   पर जीएसटी लगाने संबंध मे  बड़ा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है।