जीएसटी से पहले के दौर में इनपुट टैक्स रिफंड (आईटीसी) के संबंध में मा. सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला - आपूर्तिकर्ता द्वारा कर का भुगतान न किए जाने पर भी करदाता के आईटीसी का दावा वैध

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 मा. सर्वोच्च न्यायालय ने 9 अक्टूबर 2025 के अपने ऐतिहासिक फैसले में, दिल्ली के वाणिज्यिक कर आयुक्त बनाम शांति किरण इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (सिविल अपील संख्या 9902/2017) मामले में इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के मुद्दे पर माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। सरकार की अपील को खारिज करते हुए, यह स्पष्ट किया गया कि यदि आपूर्तिकर्ता ने कर का भुगतान नहीं किया है, तो भी करदाता को आईटीसी मिलेगा।
      माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का लाभ पंजीकृत खरीदार डीलरों को उपलब्ध है, जिन्होंने पंजीकृत आपूर्तिकर्ता डीलरों को कर का भुगतान किया है, लेकिन  आपूर्तिकर्ता डीलरोंद्वारा कर सरकार के पास जमा नहीं किया है। यह विवाद का विषय नहीं था कि लेनदेन की तिथि पर, आपूर्तिकर्ता विक्रेता  विभाग के साथ पंजीकृत था। हालांकि, लेनदेन के बाद, उन विक्रेताओं का पंजीकरण रद्द कर दिया गया था और वे सरकार के पास  कर राशी  जमा करने में विफल रहे। मा. दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले में पाया गया कि खरीदार विक्रेता ने पंजीकृत आपूर्तिकर्ता विक्रेता को सद्भावना में वैट कर का भुगतान किया। यह विवाद का विषय नहीं है कि दिए गए लेनदेन की तिथि पर,  आपूर्तिकर्ता विक्रेता विभाग के साथ पंजीकृत था। हालांकि, लेनदेन के बाद, उन विक्रेताओं का पंजीकरण रद्द कर दिया गया था।
            मेसर्स ऑन क्वेस्ट मर्केंडाइजिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार एवं अन्य, के मामले में भी इसी तरह का एक मुद्दा मा. उच्च न्यायालय के समक्ष विचारार्थ आया था। उपरोक्त मामले में उच्च न्यायालय के निर्णय को विशेष अपील (सिविल) संख्या 36750/2017 के तहत मा. सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। मा. सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप किए बिना इस विशेष अनुमति याचिका का निपटारा कर दिया।
        राज्य सरकार ने मेसर्स शांति किरण इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के मामले में मा. दिल्ली उच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के विरुद्ध मा. सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी। इस संदर्भ में, लेन-देन की तिथि पर विक्रेता व्यापारी के पंजीकरण के संबंध में कोई विवाद नहीं है और उनकी प्रामाणिकता की जाँच के आधार पर, इन मामलों में लेन-देन या प्राप्तियाँ संदिग्ध नहीं पाई गईं, इसलिए, उचित सत्यापन के बाद आईटीसी लाभ प्रदान करने के मा. उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है। मा. सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अपील में कोई दम नहीं है और तदनुसार उन्हें खारिज कर दिया गया और लंबित मामले का निपटारा कर दिया गया।
     यद्यपि यह जीएसटी से संबंधित निर्णय नहीं है, लेकिन जीएसटी के तहत हजारों आईटीसी मामले विभिन्न कानूनी प्राधिकरणों के समक्ष लंबित हैं, इसलिए इस क्षेत्र का ध्यान अब इस बात पर है कि मा. सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद ऐसे मामलों में क्या होता है।