विभाग के अनुसार, पुणे और आसपास के इलाकों में "रिटर्न विशेषज्ञों" का एक समूह सक्रिय था, जो वेतनभोगी पेशेवरों - खासकर आईटी, ऑटोमोबाइल और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कर्मचारियों - को रिटर्न दाखिल करने पर अत्यधिक रिटर्न का वादा करके लुभा रहा था। पाया गया कि इसके कारण गृह ऋण, मकान किराया भत्ता (एचआरए), चिकित्सा व्यय, बीमा प्रीमियम और शिक्षा ऋण के ब्याज और मूलधन के भुगतान पर दावों में वृद्धि हुई। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन दावों के लिए कोई दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया था, जिससे यह रैकेट व्यापक और व्यवस्थित हो गया। यह संगठित रैकेट पुरानी फाइलिंग प्रणाली की खामियों का फायदा उठाकर काम कर रहा था।
विभाग के सूत्रों ने बताया, "नई व्यवस्था में अब उन खामियों को दूर कर दिया गया है, जिससे कड़ी जाँच सुनिश्चित हो गई है।" विभाग ने यह भी संकेत दिया कि न केवल कर पेशेवर, बल्कि जानबूझकर झूठे दावे दायर करने वाले वेतनभोगी व्यक्तियों पर भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
इससे पहले आयकर विभाग ने कटौती दावों के माध्यम से पैन, टीडीएस क्रेडिट या फर्जी ट्रस्टों में हेरफेर का पता लगाया है।
अधिकारियों के अनुसार, धोखाधड़ी के पैमाने को देखते हुए, करदाताओं के बीच अधिक जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है, ताकि वे नेटवर्क की जटिलता और ऐसी योजनाओं का शिकार होने से बच सकें।